Tuesday, September 11, 2012

दीवाना हो कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी


मोहब्बत मांगती है ये दुआ अब हाथ फैलाती 
दीवाना हो कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी

कबीरा ने मोहब्बत में खुदी का घर जला डाला
तो मीरा ने मोहब्बत में पिया हंस कर ज़हर प्याला

कबीरा नाम मस्ताना भजे हरि नाम दिन राती
तो नाचे बावरी मीरा श्याम धुन में हो मदमाती 

कबीरा हाथ करतल थे तो मीरा हाथ वीणा थी
दीवाना हो... कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी

कबीरा जो बुने चादर भिगो दे राम के रस में
दिखाई पड़ते मीरा को श्याम हर एक आहट में

खुमारी नाम की कबिरा चढ़ाए रात दिन रहता
तो दिल बेचैन मीरा का हमेशा श्याम बिन रहता

ये बाते हैं इबादत की समझ सबको नही आती
दीवाना हो.... कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी

कबीरा यूँ हुआ पागल सभी को राम कहता था
तो मीरा की नज़र में भी हमेशा श्याम रहता था

कबीरा पिय से मिलने के रोज सपने सजाता था
तो मीरा को बिछड़ने का पिया से गम सताता था

कबीरा नाम का प्रेमी तो मीरा दर्द की प्यासी
दीवाना हो... कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी

कबीरा याद में प्रभु की सरे बाज़ार रोता था
रास मीरा का मोहन संग भरे दरबार होता था

ये दोनों ही दीवानों में है एक रिश्ता बड़ा प्यारा 
कबीरा प्रेम का सागर तो मीरा प्रेम की धारा

मेरे सद्गुरु श्री "ओशो" की है वाणी भी यही गाती
दीवाना हो.... कबीरा सा दीवानी हो तो मीरा सी
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